चाहत ऐसी की कुछ मैं जानू न ,
बहते धड़कनों के साथ
प्यार का सागर और भी गहरा हुआ ,
करीब आते ही उनके हमारे,
बंदिशों का और भी पहरा हुआ,
तेरे ख़याल आते हैं कुछ ऐसे,
की कुछ मैं जानू न,
जब ख्वाहिशें आसमान चूमती है,
तब मेरी निगाहें तुम्हें ढूंढ़ती है,
तेरा साथ है कुछ ऐसा ,
की कुछ मैं जानू न,
नशा है मानो हर कदम पर,
मेहरबान हो दिलोजान से वो हमपर,
तेरा हाथ मेरे हाथ में हो कुछ ऐसा,
की कुछ मैं जानू न,
मेरी चाहतों का जब वो ही हो बागबान,
क्यों हो हर बातों से तब फिर वो अनजान,
चाहत ऐसी की कुछ मैं जानू न…
© समरजीत सिंह