समय के हाथों इतना मजबूर है कोई,
सालों खुद से कितना दूर है कोई,
परेशानियां बहुत है पर गम कुछ भी नहीं,
तन्हाइयों का साथ हर पल निभाता है कोई,
वक़्त के थपेड़े झुलसते हुए सपने ,
आसुओं से अपनी प्यास बुझाता है कोई,
आसमा पर टिकी नज़रें,
धुएं में बिखरती यादें
बीते हुए कल को भुलाता है कोई,
उम्मीद लिए हाथ में सच न होने पर ख्वाब,
प्यार से खुदा को समझाता है कोई,,
बाज़ी ही तो हारी है एक पारी की,
कोई बात नहीं,
ऐसा कह कर ख़ुदा को बहलाता है कोई,,
तन्हाइयों का साथ निभाता है कोई..
©समरजीत सिंह
वक़्त जो कभी नसीब के नाम से तो कभी हादसे के नाम से जाना जाता है. नसीब से कुछ मिल जाता है वहीँ हादसे से खोना
मिलता है। हादसे जिंदगी की एक पहर है जो सब के साथ मिलती है किसी न किसी शक्ल में. वक़्त की चोंट बहुत ही गहरी होती है।
हिम्मत भी टूट जाती है। बिखरे हिम्मत के टुकड़ों को जोड़ना ही असली बहादुरी है।हादसे के बाद भी जीवित इक्छाशक्ति और सकारात्मक सोंच से प्रेरित ये कविता ऐसा भाव दर्शाता है मानो
” हार कैसे मान लूँ, अभी युद्ध ख़त्म हुआ नहीं ,, मैंने हार माना नहीं.. “
Time is sometimes known as luck and sometimes as an accident. One gets something by luck, while
One gets to lose by accident. Accidents are a phase of life that meets with everyone in some form or the other. The time frame is very deep.
Inspired by the willpower and positive thinking alive even after the accident, this poem shows a feeling as if
“How should I accept defeat now, the war is not over yet, I have not given up..”