इन आँखों में बसते  हो तुम

निगाहें तक रही है किसी को,

इंतज़ार में मैं और चाँद बैठे हैं,

एक राह पर एक ही आस लिए ,

शायद तुम आओगे,

ये और बात है,

इन आँखों में बसते  हो तुम,

फिर भी देखना चाहती है ये तुम्हे,

अब बस एक ही तलाश है,

बची सिर्फ एक ही प्यास है,

वो हो तुम,

ये और बात है ,

इन आँखों में बसते हो तुम ,

फिर भी देखना चाहती है ये तुम्हे,

ये रात है फिर तुम्हारे आँखों के कोर पर ठहरा हुआ काजल,

इसी पहर में दिल क्यों खोजता है तुम्हे हरपल,

सिमटती हुई दूरियां में तुम्हारी ही कल्पना की है मैंने,

ये और बात है,

इन आँखों में बसते हो तुम ,

फिर भी देखना चाहती है ये तुम्हे,

झुकती हुई पलकों का इशारा पाकर,

सूरज जा छिपा है कहीं दूर,

उसे पता है,

कहीं किसी की निगाहें ढूंढ रही होगी किसी को,

ये और बात है ,

इन आँखों में बसते हो तुम ,

फिर भी देखना चाहती है ये तुम्हे,, 

                                                                             

© समरजीत सिंह

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