मर्कज़
मर्कज़ खाली बैठा है तेरे इंतज़ार में ,
बढ़ते जा राह पर जैसे हो कोई तकसिर,,
दम समझे वो भी कितना है इस मुफ़लिस के प्यार में ,
अंगारों पे चल के जिसने बदल दी अपनी तक़दीर।।
– समरजीत सिंह
मेरे कब्र पर रोनेवाले,
वैसे तो कम न थे,
बड़ी भीड़ थी जमा वहाँ ,
बस एक तुम न थे । ।
-समरजीत सिंह
गुस्सा हुए हैं वो कुछ इस तरह,
हर वक़्त आईने से लड़ते हैं,
लिखे हुए किसी के खत को,
वो हर तीसरी बार पढ़ते हैं,
सोंचते है वो चलो क्षितिज हो जाएँ,
कदम उनके पीछे तो कभी आगे की ओर बढ़ते हैं,,
– समरजीत सिंह
वही रात मेरी ,
वही रात उनकी,
कहीं बढ़ गयी है,
कहीं घट गयी है,,
– समरजीत सिंह
आज फिर ज़ी करता है कुछ गुनगुनाने को,
बस एक ही तरीका बचा है,
अपने रूठे मन को मानाने को,
यह दिल तो बड़ा पागल है मानता ही नहीं,
एक ऐसे शक़्स पर मर मिटा है,
जिसे वो जानता ही नहीं ,,
– समरजीत सिंह
मोहब्बत के तरकश में न जाने
अदा के कितने तीर रखते हैं,
आँखों से निकल जो सारे ,
मेरे दिल को चीर निकलते हैं,
बदगुमां हैं वो भी तो हम बाकमाल हैं,
उनके हर सवालों का जवाब हम रखते हैं..
-समरजीत सिंह
उनकी तमन्ना मेरी कोशिशें बाहम वादे और क़समें ,
कुछ मेरी तक़दीर के सदक़े बाकी सब हालात के नाम,
– अमानुल्लाह खान