आज हर शाम सूनी है

आज हर शाम सूनी है,

शहनाई बन कर बोलती है तन्हाई,

फ़िज़ाओं के रंग सारे खो गए,

रात के अँधेरे में आसमा गुलाब के पत्तों पर रो गए,

तेरे खुमार का रंग कहाँ से लाऊँ मैं,

तेरी मुस्कराहट की ख़ुशी कहाँ से चुराऊँ मैं,

आज कल,

हर पल

जब कभी,

यादों की पुरवाई आती है,

हमसे ये कह जाती है,

मुड कर क्यों नहीं देखते हो पीछे,

शायद आज भी खड़ा हो वो छत के नीचे. .

                                                     © समरजीत सिंह    

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