क्यों ऐसी कोई बात होती है
क्यों ऐसी कोई जज्बात होती है,
होते जब तुम नहीं पास
क्यों मायूस वो रात होती है,
क्यों ऐसी कोई बात होती है,
क्यों ऐसी कोई जज्बात होती है,
बोलता है दिल उसके कदमों के आहट पर ,
नज़र रखता है कोई उसके हर मुस्कराहट पर,
आते ही शाम के
सितारों को ओढ़े बाहें फैलाये खड़ी कायनात होती है,
क्यों ऐसी कोई बात होती है
क्यों ऐसी कोई जज्बात होती है,
ख्वाहिशें जब पिघल कर आँखों से गिरती है
हर कशिश मानो तुम्ही से शरू तुम पे मिटती है,
पलकें उठे तो दिन,
पलकें गिरे तो रात होती है,,
क्यों ऐसी कोई बात होती है,
क्यों ऐसी कोई जज्बात होती है,
© समरजीत सिंह