लबों की जादूगरी

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तुम्हारे लबों की जादूगरी 

हम आज जान पाएं हैं,

ये बात किसी से न कहने की 

उनसे हम कसम खाये हैं,,

मिज़ाज न पूछे कोई हमसे,

मर जाएंगे हम शर्म से,,

फिरदौस के नशेमन से हम होकर आएं हैं,

ये बात किसी से न कहने की 

उनसे हम कसम खाये हैं,,

आँचल ढल रहा था,

दुपट्टा न संभाला गया,

होठों पर उनकी एक 

सुहानी तबस्सुम सजा आये हैं,,

ये बात किसी से न कहने की 

उनसे हम कसम खाये हैं,,

शर्माए बैठे हैं नज़रें झुकाये,

कोई आखिर कैसे समझे इस अदब को,

की हम उन्हें एक दूसरी जहाँ में बैठा आये हैं,,

ये बात किसी से न कहने की 

उनसे हम कसम खाये हैं,,

तुम्हारे लबों की जादूगरी 

हम आज जान पाए हैं… 

 © समरजीत सिंह 

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