झुकी नज़रें

 

क्यों बैठे हो इस तरह नज़रें झुका कर,

देख तो ज़रा इधर,

तेरे सामने आ बैठा हूँ मैं दुनिया भुला कर। 

कुछ देर ठहर ज़रा देख लो इन्हे,

अपनी आंखों में लाया हूँ मैं तुम्हारे सपने सजा कर,,

दिल में बस तुम्हारे ख्वाब बसा कर,

उठे हर सवालों को समझा कर,,

सांस ले रहा हूँ,

की,

कभी तो होगे तुम किसी जिंदगी में,

किसी की अर्ज़ किसी की बंदिगी में,

यूँ खामोश न तुम अब रहना,

ज़हन में उठे हर ज़ज़्बात तुम अब कहना,

क्योंकि ,

कोई है,

अपनी तमन्नाओं को तेरे चाहत से सजा कर,

देख तो ज़रा इधर,

तेरे सामने आ बैठा हूँ मैं दुनिया भुला कर।  

©  समरजीत सिंह 

Spread the love

Leave a Comment