दूर हूँ तुझसे
तेरे एहसास से नहीं,
सुन नहीं सकती हूँ तेरी आवाज़ मैं,
पर कैसे भूलूँ ,
वो सारी बातें,
वो महकती रातें,
आज ये ही रातें मुझे काटने को दौड़ती है,
मानो मुझे हिस्सों में बाटनें को दौड़ती है,
आज कल ,
हर पल ,
जब कभी तुम्हारे ख्यालों की लेती हूँ पनाह ,
धड़कनों को कहते है सुना,
क्या बात है?
कितनी सुकून भरी रात है,
जहाँ,
चांदनी लपेटे एहसास बिखरी पड़ी है,
यहाँ वहां,
हर सू ,
सिर्फ तुम्हारी ही जुस्तजू ||
© समरजीत सिंह