Great Poets and their Great Words
मशहूर शायर मशहूर कलाम शीर्षक के अंतर्गत विभिन्न बेहतरीन शायर के कमाल की शायरी शामिल है जो आपको चित
परिचित अंदाज़ में ख़यालों की दुनिया में जाने को विवश करेगी। वसीम बरेलवी की पंक्तियाँ तो निदा फ़ाज़ली की उक्तियाँ।
बशीर बद्र के अलफ़ाज़ है तो यहीं पर सुदर्शन फ़क़ीर के शब्दों के साज़ भी हैं। चलो चलते हैं शब्दों की ख़याली दुनिया में।
Bashir Badra की मशहूर शायरी
अपने हर लफ्ज़ का खुद आइना हो जाऊँगा,
उसको छोटा कहके मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा ,
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं,
मैं गिरा तो मसला बन कर खड़ा हो जाऊँगा ,
मुझ को चलने दो अकेला है अभी मेरा सफर,
रास्ता रोका तो काफ़िला हो जायेगा,
सारी दुनिया की नज़र में है मेरा अहद-ए-वफ़ा,
इक तेरे कहने से क्या मैं बेवफा हो जाऊँगा,,
-बशीर बद्र
बशीर बद्र के शब्द
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने कब जिंदगी की शाम ढल जाए।
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ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊं तो सर दीवार से जा लगता है,
यहाँ लिबास की कीमत है आदमी की नहीं,
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे,
उनके देखे से जो आ जाती है मुंह पे रौनक,
वो समझते हैं की बीमार का हाल अच्छा है,,
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा,
इतना मत चाहो उसे वो बेवफा हो जाएगा,
हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा,
कितनी सच्चाई से मुझे जिंदगी ने कहा,
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जाएगा,
रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है दोस्तों
क्या पता था की वो इतना खफा हो जायेगा
मैं खुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों,
ज़हर भी अगर मिला हो तो वो दवा हो जायेगा,
सब उसी के हैं हवा ज़मीं ओ आसमाँ
मैं जहाँ भी जाऊँगा उसको पता हो जायेगा,,
— -बशीर बद्र
सर से पाँव तक वो गुलाबों का सजर लगता है,
बा-वज़ू होकर भी तुझे छूने में डर लगता है ,
मैं तेरे साथ सितारों से गुजर सकता हूँ
कितना आसान मोहब्बत का सफर लगता है,
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा,
खुद से तन्हाई में मिलने में डर लगता है,,
बुत भी रखे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं,
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है,,
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊं तो सर दीवार से जा लगता है,,
— बशीर बद्र
- बा-वज़ू = पवित्र
अपने चेहरे से जो जाहिर है छुपाएं कैसे,
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आये कैसे,
घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है,
पहले ये तय हो की इस घर को बचाएं कैसे,
लाख तलवारें बढ़ी आती हों गर्दन की तरफ,
सर झुकाना नहीं आता तो झुकाएं कैसे,
कहकहा आँख का बर्ताव बदल देता है,
हंसनेवाले तुझे आंसू नज़र आये कैसे,
फूल से रंग जुड़ा होना कोई खेल नहीं,
अपनी मिटटी को कोई छोड़ के जाएँ कैसे,
कोई अपनी नज़र से तो हमें देखे,
एक कतरे को समन्दर नज़र आये कैसे,
जिसने दानिश्ता किया हो नज़र-अंदाज़ ‘वसीम’,
उसको कुछ याद दिलाएं तो दिलाएं कैसे..
— वसीम बरेलवी
जब भी तन्हा पाते हैं मुझे गुजरते लम्हे,
तेरी तस्वीर सी राहों में बिछा जाते हैं,
मैं की राहों में भटकता चला जाता हूँ,
मुझ को खुद मेरी निगाहों से छुपा जातें हैं
मेरे बेचैन ख्यालों पे उभरने वाली,
अपने ख्वाबों से न बहला मेरी तन्हाई को,
जब तेरी सांस मेरी सांस में तहलील नहीं,
क्या करेंगी मेरी बाहें तेरी अंगड़ाई को,
जब ख्यालों में तेरी जिस्म को छू लेता हूँ
ज़िंदगी शोला-ए-माज़ी से झुलस जाती है,
जब गुज़रता हूँ गम-ए-हाल के वीराने से,
मेरे एहसास के नागिन मुझे डस जाती है,
हमसफ़र कहूं तुझको या रह-ज़न समझूं,
राह में लाकर छोड़ दिया है तूने,
एक वो दिन की तेरा प्यार बसा था दिल में,
एक ये वक़्त की दिल तोड़ दिया है तूने,
माज़ी-ओ-हाल की तफ़रीक़ वो कुर्बत -ए- फ़िराक,
प्यार गुलशन से चला आया है जिंदानों में,
बे-ज़री अपनी सदाक़त को परखती ही रही,
तल गया हुश्न ज़र-ओ-सिम की मिज़ानों में,
गैर से रेशम-ओ-कम-ख्वाब की राहत पाकर,
तू मुझे याद भी आएगी तो क्या आएगी,
एक मुस्तक़ब्बिल-ए-ज़र्रीं की तिज़ारत के लिए,
तू मोहब्बत के तक़द्दुस को भी ठुकराएगी,
और मैं प्यार के तक़्दीस पर मरने वाला,
दर्द बन कर तेरे एहसास बैन बस जाऊंगा,
वक़्त आएगा तो इख़्लास का बादल बन कर,
तेरी झुलसी रातों पे बरस जाऊंगा..
— क़ातिल शिफई
*तहलील= शामिल
*तफ़रीक़= बिछड़ना
*मुस्तक़ब्बिल-ए-ज़र्रीं = स्वर्णिम भविष्य
* जिंदानों= क़ैद खाना
* तक़द्दुस=पवित्रता