शायरी !

मर्कज़ खाली बैठा है तेरे इंतज़ार में ,

बढ़ते जा राह पर जैसे हो कोई तकसिर,,

दम  समझे वो भी कितना है इस मुफ़लिस के प्यार में ,

अंगारों पे चल के जिसने बदल दी अपनी तक़दीर।।