फासले ऐसे भी होंगे

फासले ऐसे भी होंगे कभी सोंचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,

वो की खुसबू की तरह फैला था मेरे चार सु ,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था

चाहत

चाहत ऐसी की कुछ मैं जानू न ,बहते धड़कनों के साथप्यार का सागर और भी गहरा हुआ , …

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शायरी !

मर्कज़ खाली बैठा है तेरे इंतज़ार में ,

बढ़ते जा राह पर जैसे हो कोई तकसिर,,

दम  समझे वो भी कितना है इस मुफ़लिस के प्यार में ,

अंगारों पे चल के जिसने बदल दी अपनी तक़दीर।।