सुकून है बस तेरे ही पनाहों में,
चाहे हो तेरी यादें या फिर तेरी बाहों में,,
बिस्तर की सिलवटों से पता चला है,
तू सोया है या फिर ,
गुजरी है रात तेरी आहों में,,
अब के बरस
फिर क़यामत जागेगी सावन के महीने में,
दिखेंग़े अंगारे
बरसेंगे मौसम जिन राहों में,
उन पर ही कभी किसी रहनुमा ने
किसी राहगुजर को उसकी मंजिल बताई थी,
और उस मुसाफिर ने मानो
पल दो पल में ही अपनी हयात पाई थी,
आज
अरसा है बीता ,
बरसा कर आँखों से दरिया
इस कदर है वो जीता
मानो इश्क़ शामिल हो गया है गुनाहों
सुकून है बस तेरे ही पनाहों में,
चाहे हो तेरी यादें या फिर तेरी बाहों में,,
सिरहाने रख कर आज भी सोता है
वो तेरी तस्वीर को ,,
कुछ इस तरह आमिर बनाती है ये रश्म इस फ़क़ीर को
ढूंढ़ता है तेरे सवाल को अपने हर जवाबों में ,
मिले जाओगे जो कभी ख़्वाबों में,
तो पाओगे मुझे भी तुम बेगुनाहों में ,
सुकून है बस तेरी पनाहों में,
– समरजीत सिंह