फासले ऐसे भी होंगे
फासले ऐसे भी होंगे कभी सोंचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,
वो की खुसबू की तरह फैला था मेरे चार सु ,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
फासले ऐसे भी होंगे कभी सोंचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,
वो की खुसबू की तरह फैला था मेरे चार सु ,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
क्यों ऐसी कोई बात होती है क्यों ऐसी कोई जज्बात होती है, होते जब तुम नहीं पास क्यों …
क्या
जिस तरह तुम हमें याद आते हो ,
मैं उस तरह तुम्हे याद आता हूँ ?
बुझे जब भी शाम-ऐ- महफ़िल की शमा,
क्या मैं तुम्हे दिख जाता हूँ?
ये जो चंद साँसे मेरे सीने में धीमी गति से चल रही है, तुम्हारे होने के लिए मचल …