फासले ऐसे भी होंगे
फासले ऐसे भी होंगे कभी सोंचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,
वो की खुसबू की तरह फैला था मेरे चार सु ,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
फासले ऐसे भी होंगे कभी सोंचा न था,
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था,
वो की खुसबू की तरह फैला था मेरे चार सु ,
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
तुम्हारे लबों की जादूगरी हम आज जान पाएं हैं, ये बात किसी से न कहने की उनसे हम …